महाराष्ट्र में बीजेपी के पास 105 विधायक हैं और शिंदे गुट में 41 विधायक। लेकिन बीजेपी ने बराबर ही मंत्री चुने। इसके मायने क्या है ये तो बीजेपी जाने मगर इसके दूरगामी परिणाम ऐसे ही हो सकते हैं जैसे कि आज बिहार में बीजेपी के हो रहे हैं। बिहार में दूसरी सबसे पड़ी पार्टी होने के बाद भी बीजेपी ने जेडीयू को मजबूत किया।
हाइलाइट्स
- बिहार में बीजेपी के हाथों से फिसली सत्ता की चाभी
- बिहार की तरह क्या महाराष्ट्र में शिंदे गुट को मजबूत कर रही है बीजेपी
- सीएम नीतीश कुमार ने अमित शाह से भी कुछ नहीं बताया
बिहार में सीएम पद किया न्योछावर
उर्दू के मशहूर शायर राहत इंदौरी साहब का एक शेर है। नए किरदार आते जा रहे हैं, मगर नाटक पुराना चल रहा है। बिहार में गुपचुप तरीके से जिस तरह से नीतीश कुमार ने पलटी मारी है वो कहीं न कहीं बीजेपी की भूमिका पर भी सवाल खड़े कर रही है। बीजेपी ने 2020 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। उसे 74 सीटों पर जीत मिली थी जबकि जेडीयू को महज 43 सीटें मिलीं। लेकिन चुनाव से पहले ही बीजेपी ने ये कह दिया था सीएम नीतीश कुमार ही बनेंगे। बीजेपी अपने स्टैंड पर कायम रही और नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बना दिया गया। बीजेपी और जेडीयू में सबकुछ बहुत अच्छा नहीं था फिर भी सरकार चलती रही। लेकिन बिहार बीजेपी कार्यकर्ता बीजेपी के फैसले से बहुत ज्यादा खुश नहीं थे। आखिर इतनी दरियादली की वजह क्या है ?
महाराष्ट्र में फडणवीस का डिमोशन
महाराष्ट्र में जब बीजेपी ने एकनाथ शिंदे को सीएम बनाने का फैसला किया तो बीजेपी कार्यकर्ता से लेकर हर कोई हैरान रह गया। पूर्व सीएम महाराष्ट्र में बीजेपी का चेहरा देवेंद्र फडणवीस को खुद एक घंटे पहले पता चला कि उनको डेप्युटी सीएम का पद संभालता है। जबकि फडणवीस ने साफ कर दिया था कि वो कोई पद नहीं लेंगे। बीजेपी आलाकमान नेताओं या फिर पीएम मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने महाराष्ट्र की राजनीति में बीजेपी के कदम बढ़ाने के लिए ये फैसला किया हो मगर इसका इम्पैक्ट राज्य के नेताओं पर गहरा पड़ेगा। एकनाथ शिंदे को सीएम बनाकर शिंदे गुट का तो मान रख लिया मगर बाकी सभी बीजेपी नेता खुद को ठगा महसूस करने लगे।
मंत्रिमंडल में दागी विधायक
महाराष्ट्र में मंत्रीमंडल का विस्तार हुआ। बीजेपी की दरियादिली यहां भी देखने को मिली। दोनों की ओर से 8-8 विधायकों ने मंत्री पद की शपथ ली। जबकि महाराष्ट्र में बीजेपी के पास 105 विधायक हैं और शिंदे गुट में 41 विधायक। लेकिन बीजेपी ने बराबर ही मंत्री चुने। इसके मायने क्या है ये तो बीजेपी जाने मगर इसके दूरगामी परिणाम ऐसे ही हो सकते हैं जैसे कि आज बिहार में बीजेपी के हो रहे हैं। बिहार में दूसरी सबसे पड़ी पार्टी होने के बाद भी बीजेपी ने जेडीयू को मजबूत किया। उसका नतीजा ये हुआ कि दो दिन पहले अमित शाह से नीतीश कुमार से सब कुछ सही होने की बात कही और उसके बाद गठबंधन तोड़ दिया। बिहार बीजेपी के नेता सुशील मोदी ने ये दावा किया।
खुद बीजेपी ने किया था विरोध
शिंदे गुट से 9 विधायकों को मंत्री बनाया गया। इनमें से दो ऐसे नाम सामने आए हैं जिनके ऊपर गंभीर मामले दर्ज हैं। महाराष्ट्र बीजेपी के नेता चित्रा वाघ ने टिकटॉक स्टार पूजा चव्हाण आत्महत्या मामले में महाराष्ट्र सरकार के मंत्री और शिवसेना के नेता संजय राठौड़ के खिलाफ मामला दर्ज कराया। उनका कहना है कि संजय ने पूजा को आत्महत्या के लिए उकसाया है? इनके खिलाफ मामला दर्ज हैं और जांच जारी है मगर बीजेपी शिंदे गुट की सरकार में इनको मंत्री बनाया गया। इससे बीजेपी कार्यकर्ता और उस महिला नेता जिससे मामला दर्ज करवाया था उस पर क्या गुजरेगी। दूसरा नाम है शिंदे दल के विधायक अब्दुल सत्तार।अब्दुल सत्तार वो नेता है जिसके खिलाफ खुद बीजेपी कार्यकर्ताओं ने आंदोलन किया था। आज वही नेता मंत्री बनाया गया। अब यहां पर सवाल उठता है कि क्या बीजेपी इतना मजबूर है कि उसको ऐसे नामों को जोड़ने में भी कोई गुरेज नहीं है।
नीतीश की ये पुरानी आदत
अब जरा अतीत की बात कर लेते हैं। नीतीश कुमार का राजनीति में आगमन जेपी आंदोलन से हुआ। 1999 में एनडीए की सरकार बनी। अटल बिहारी वाजपेयी पीएम बने। जॉर्ज फर्नांडीस ने 1994 में नीतीश कुमार समेत कुल 14 सांसदों के साथ जनता दल से नाता तोड़कर जनता दल (जॉर्ज) बनाया जिसका नाम अक्टूबर 1994 में समता पार्टी पड़ा। 1995 में समता पार्टी अपने दम पर बिहार विधानसभा चुनाव लड़ी लेकिन लालू के सामने समता पार्टी फिसड्डी साबित हुई उसे सिर्फ 7 सीटें ही मिलीं। लेकिन दोनों वक्त को भांप गए थे। फिर जॉर्ज ने 1996 में बीजेपी के साथ गठबंधन के लिए हाथ बढ़ाया। उसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनी। सब सहयोगियों को सरकार में शामिल किया गया तब वाजपेयी ने जॉर्ज को रक्षा मंत्री बनाया था। 1996 में हुए लोकसभा चुनाव में समता पार्टी को 8 सीट मिलीं, वहीं 1998 में 12 सीट।
जॉर्ज फर्नांडिस के साथ क्या हुआ
जॉर्ज रक्षा मंत्री के तौर पर कभी सियाचिन में तो कभी दिल्ली की हवा में थे लेकिन इस दौर में नीतीश कुमार बिहार में अपनी जमीन मजबूत करते रहे थे। क्या पता था कि नीतीश कुमार अपनी जमीन तैयार करने के साथ फर्नांडिस की जमीन बंजर कर देंगे। ये जॉर्ज का ही साथ था कि नीतीश कुमार 2003 में बीजेपी से गठबंधन तोड़कर जनता दल यूनाइटेड बना सके. और देखते देखते जॉर्ज फर्नांडिस की छवि ने नीतीश को 2005 में बिहार का मुख्यमंत्री बना दिया। लेकिन 2007 में ऐसा वक्त आया जब नीतीश कुमार ने जॉर्ज फर्नांडिस को ही पार्टी अध्यक्ष पद से हटा दिया और शरद यादव को जेडीयू का अध्यक्ष बना दिया। यहीं से जॉर्ज राजनीति में किनारे होने लगे। जिस पार्टी को जॉर्ज ने बनाया था उसी पार्टी में अध्यक्ष का चुनाव वो अप्रैल 2006 में शरद यादव के हाथों हार गए।
बीजेपी के फैसले समझ से परे
ऐसा नहीं है कि पीएम मोदी या अमित शाह जिनको बीजेपी का चाणक्य कहा जाता है उनको ये इतिहास नहीं पता होगा। नीतीश कुमार एक बेहतर सीएम हो सकते हैं मगर वो दोस्ती भी निभाएं ये जरूरी नहीं। बिहार में बीजेपी का आज जो हाल हुआ है उसकी पटकथा 2020 में ही लिख गई थी जब बीजेपी ने सरेंडर किया था। उससे पहले भी एक बार नीतीश कुमार बीजेपी से नाता तोड़कर राजद के साथ सरकार बना चुके थे मगर बीजेपी को लगा कि उनके साथ नीतीश का आना घर वापसी है। बीजेपी ने बिहार की तीसरे नंबर की पार्टी के नेता को सीएम बना दिया। आज ये मुश्किलें हैं बिहार की तरह ही महाराष्ट्र में भी शिंदे गुट को मजबूत कर रही है ये स्ट्रैट जी है या दरियादली ये तो बीजेपी जानें, मगर इससे कार्यकर्ताओं में निराशा जरूर है।
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