RJD JDU Alliance : जनता दल यूनाइटेड के समान्य कार्यकर्ताओं की बात तो रहने दीजिए, नीतीश कुमार कैबिनेट में उन्हीं की पार्टी के कई मंत्रियों को लगता है कि लालू यादव के लाल तेजस्वी यादव से हाथ मिलाना बेमेल शादी होगी। ऐसी परिस्थिति में अगर मोदी मैजिक चला तो जेडीयू का अस्तित्व समाप्त हो सकता है। तेजस्वी यादव भी चाहेंगे कि जेडीयू का वोट बैंक राजद में ट्रांसफर हो जाए।
अस्तित्व बचाने की लड़ाई
मेरा मानना है कि नीतीश कुमार अभी बिहार में ही बने रहेंगे। उनके लिए कुर्सी जरूरी है। कुर्सी बचाने के लिए और अपने राजनीतिक भविष्य के लिए ही वो पिछले दो साल से काम कर रहे थे। बिहार में कोई सरकार नहीं चल रही थी। वो सिर्फ पॉलिटिक्स पर एक्ट और रिएक्ट कर रहे थे। गवर्नेंस की बात तो हुई ही नहीं। विकास पुरुष नीतीश कुमार पिछले कई वर्षों से दिखाई नहीं दे रहे। केंद्र की मदद से योजनाएं आगे बढ़ रही हैं। उन्हें लगता रहा कि पहले अपने भविष्य को सुरक्षित रख लें फिर कुछ करें। भाजपा ने तो महागठबंधन धर्म का पालन करते हुए उन्हें सीएम की कुर्सी दे दी। इसके बावजूद वो पहले दिन से ही असुरक्षित महसूस कर रहे थे। इस बीच कानून और व्यवस्था भी गिरती गई। एनआईए के हालिया रेड बताते हैं कि बिहार में आतंकी स्लीपर सेल पांव पसार रहा था। दरभंगा मॉड्यूल तो बाटला के बाद ही सामने आ गया था। इन मुद्दों पर भाजपा जरूर नीतीश को निशाना बना रही थी क्योंकि वो गृह मंत्रालय अपने ही पास रखते आए हैं।
कुर्सी बचाने के लिए और अपने राजनीतिक भविष्य के लिए ही वो पिछले दो साल से काम कर रहे थे। बिहार में कोई सरकार नहीं चल रही थी। वो सिर्फ पॉलिटिक्स पर एक्ट और रिएक्ट कर रहे थे
नीतीश कुमार अल्पसंख्यकों का वोट पाने के लिए हमेशा लालायित रहे हैं। इसीलिए बजट तक में मजारों और कब्रगाहों के लिए विशेष योजनाएं बनाई गई। जब वो लालू यादव से अलग रहे तब भी नीतीश ने मुसलमानों का वोट पाने की कोशिश की। 2010 में उन्हें वोट जरूर मिला। बदलाव के कारण। 2015 में लालू के साथ थे इसलिए महागठबंधन को मिला। भाजपा के साथ जाने के बाद जेडीयू से वो वोट बैंक पूरी तरह निकल गया। पिछड़ा वोट बैंक लगातार भाजपा की तरफ शिफ्ट होता गया। इसलिए जेडीयू के भीतर लगातार ये चिंता रही कि गिरते हुए सामाजिक आधार को कैसे मैनेज करें। जेडीयू की कोशिश है कि कम से कम 20 प्रतिशत वोट बैंक सुनिश्चित हो ताकि बिहार में वो प्रासंगिक बने रहें।
अब आज फिर से पलटी मारने के बाद नीतीश कुमार को धर्मनिरपेक्षता की याद आएगी। उनकी कोशिश होगी कि 18 परसेंट मुस्लिम वोट बैंक में कुछ हिस्सा हासिल करें ताकि स्वतंत्र तरीके से बिहार में पार्टी का अस्तित्व बना रहे। लेकिन ऐसा हो पाना मुश्किल है। मेरा मानना है कि नीतीश कुमार के बिना जेडीयू का अस्तित्व बिहार में है ही नहीं। इसलिए नीतीश कुमार चाहे बीजेपी के साथ रहते या अब आरजेडी के साथ दोनों ही हालात में उनकी पार्टी को बड़ी सहयोगी पार्टी खा जाएगी। नीतीश कुमार ने अपनी पार्टी में कोई दूसरा लीडरशिप तैयार नहीं किया। सेकेंड लाइन है ही नहीं। उधर विकास के एजेंडे पर मोदी मॉडल के सहारे बीजेपी लगातार नीतीश पर बीस साबित होने की कोशिश करती रही। जब सुशासन पर चोट हो और विकास का मॉडल मोदी का चले तो चुनाव में नीतीश के पास बिहार की जनता के लिए कुछ रह नहीं जाता। नीतीश का जातीय आधार तो हमेशा 5 से सात परसेंट का रहा है। अब तेजस्वी यादव कोशिश करेंगे कि जेडीयू का वोट बैंक आरजेडी के पास शिफ्ट हो जाए। बिहार की राजनीति का नया सितारा करार दिए जा रहे तेजस्वी यादव 45 सीटों वाली पार्टी के नेता को यूं हीं सीएम नहीं बना रहे।
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